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|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
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हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं
खामोश ख़ामोश पड़े दिल को तड़पना सीखा दिया
हम पर किसी के प्यार के अहसान बहुत हैं
काँटों का ताज कौन पहनता है यह, गुलाब!
माना कि खेल प्यार के आसान बहुत हैं
 
 
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