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आंख वाले हो के भी अंधे हुए
सोचिए कुछ हादसे ऐसे हुए
 
बेदख़ल इंसानियत होने लगी
जब ज़रूरत से अधिक पैसे हुए
 
इस तरक़्क़ी का यही हासिल रहा
ज़िन्दगी के स्वाद सब फीके हुए
 
वो न समझेंगे कभी संवेदना
जो मशीनों के ही कलपुर्ज़े हुए
 
गांव में कमज़ोर कुछ बूढ़े बचे
शेष तो नगरों के बाशिंदे हुए
 
आधुनिक बनने का मतलब क्या यही
क़ीमती वस्त्रों में भी नंगे हुए
 
आप क़ाबिल थे , बहुत ही अक़्लमंद
आप के फिर साथ क्यों धोखे हुए
 
गिरगिटों की जात हम पहचानते
तब वही कैसे थे, अब कैसे हुए
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