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"बेजा एहसास / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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12:22, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

जिंदगी में
जहाँ भी
जिस तरह लोग रहते हैं
गंदे नाबदान की तरह
निरंतर बहते हैं,
आदमी होने का
बेजा एहसास करते हैं
दुर्गंध के
माहौल में
दिन-रात कलपते हैं

रचनाकाल: ०२-०९-१९७४