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खुली-खुली-सी खिड़कियाँ, लुटी-लुटी-सी बस्तियाँ / गुलाब खंडेलवाल
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19:58, 25 जून 2011
गुलाब! अब भी डाल पे, भले ही तुम हो खिल रहे
कहाँ हैं सुर बहार के! कहां हैं उनकी
शोखियाँ
शोख़ियाँ
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Vibhajhalani
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