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वह उठी आँधी कि मंज़िल का पता भी खो गया
दिल में जो अरमान थे दिल में तड़प कर तड़पकर रह गये
फ़िक्र क्या अब तो नज़र आने लगा है उनका घर
कारवाँ गुजरे बहारों के भी सज-धजकर गुलाब!
तुम हमेशा बांधते बाँधते ही अपना बिस्तर रह गये
<poem>
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