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और दीवाने सभी चक्कर लगाकर रह गये / गुलाब खंडेलवाल
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19:13, 1 जुलाई 2011
वह उठी आँधी कि मंज़िल का पता भी खो गया
दिल में जो अरमान थे दिल में
तड़प कर
तड़पकर
रह गये
फ़िक्र क्या अब तो नज़र आने लगा है उनका घर
कारवाँ गुजरे बहारों के भी सज-धजकर गुलाब!
तुम हमेशा
बांधते
बाँधते
ही अपना बिस्तर रह गये
<poem>
Vibhajhalani
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