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हमारी ज़िन्दगी ग़म के सिवा कुछ और नहीं / गुलाब खंडेलवाल
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03:36, 2 जुलाई 2011
किसी के जुल्मो-सितम के सिवा कुछ और नहीं
समझ लें प्यार भी हम उस नज़र की
शोखी
शोख़ी
को
मगर ये अपने भरम के सिवा कुछ और नहीं
यहाँ जो कहते हैं, 'दम के सिवा कुछ और नहीं'
समझता है जिसे
खुशबू
ख़ुशबू
, गुलाब! तू अपनी
वो एक हसीन वहम के सिवा कुछ और नहीं
<poem>
Vibhajhalani
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