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हमारी ज़िन्दगी ग़म के सिवा कुछ और नहीं / गुलाब खंडेलवाल
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हमारी ज़िन्दगी ग़म के सिवा कुछ और नहीं
किसी के ज़ुल्मो-सितम के सिवा कुछ और नहीं
समझ लें प्यार भी हम उस नज़र की शोख़ी को
मगर ये अपने भरम के सिवा कुछ और नहीं
वो जिसको आख़िरी मंज़िल समझ लिया तूने
वो तेरे अगले क़दम के सिवा कुछ और नहीं
टिका है दम ये किस उम्मीद पे, पूछो उनसे
यहाँ जो कहते हैं, 'दम के सिवा कुछ और नहीं'
समझता है जिसे ख़ुशबू, गुलाब! तू अपनी
वो एक हसीन वहम के सिवा कुछ और नहीं