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"बनो मत / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सफाई की कोई ज़रूरत नहीं | |
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− | + | और तुम्हारा अहं तुष्ट हुआ भी | |
− | + | पर वहीं तुम चूक गये, प्यारेलाल ! | |
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− | + | तुम्हारें चरणों पर टिका | |
− | + | तुम नहीं समझ पाये | |
− | + | कि यह मैं नही | |
− | + | भय है-तुम्हारा ही दिया | |
+ | जिसे सहारा चाहिए | ||
+ | जैसे भूख को रोटी | ||
+ | प्यास को पानी। | ||
− | + | और तुम | |
− | + | जो ईश्वर होने जा रहे थे | |
− | + | एक वस्तु, एक जिंस बन कर रह गये। | |
− | + | इसे तुम्हारी नियति कहूँ | |
− | + | या कर्मफल | |
− | तुम | + | कि तुम अपने ही बुने जाल में फँसते चले गये |
− | + | और तुम्हें लखाव भी नहीं पड़ा ! | |
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17:57, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
बनो मत
सफाई की कोई ज़रूरत नहीं
तुम ने ये बखेड़ा किसलिए किया
सो मुझे पता है।
और तुम्हारा अहं तुष्ट हुआ भी
पर वहीं तुम चूक गये, प्यारेलाल !
जब मेरा सिर
तुम्हारें चरणों पर टिका
तुम नहीं समझ पाये
कि यह मैं नही
भय है-तुम्हारा ही दिया
जिसे सहारा चाहिए
जैसे भूख को रोटी
प्यास को पानी।
और तुम
जो ईश्वर होने जा रहे थे
एक वस्तु, एक जिंस बन कर रह गये।
इसे तुम्हारी नियति कहूँ
या कर्मफल
कि तुम अपने ही बुने जाल में फँसते चले गये
और तुम्हें लखाव भी नहीं पड़ा !
(1969)