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"कह दो तो! / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | जूड़े मे फूल टाँक दूँ | |
ओ प्रिया | ओ प्रिया | ||
कह दो तो हरसिंगार का | कह दो तो हरसिंगार का | ||
दूध नहाई जैसी रात | दूध नहाई जैसी रात | ||
− | हुई | + | हुई साँवरी, |
− | रह रह के भिगो रही | + | रह-रह के भिगो रही |
पुरवाई बावरी, | पुरवाई बावरी, | ||
− | भीग गया है तन मन | + | भीग गया है तन-मन |
− | + | पाँवों में है रुनझुन | |
− | अंग अंग में उभार दूँ | + | अंग-अंग में उभार दूँ |
ओ प्रिया, | ओ प्रिया, | ||
कह दो तो छंद प्यार का | कह दो तो छंद प्यार का | ||
− | खुली हुई | + | खुली हुई साँकल है |
− | खुली हुई | + | खुली हुई खिडकियाँ |
− | शोख | + | शोख हवाएँ देतीं |
− | मंद मंद | + | मंद-मंद थपकियाँ |
भीतर बाहर अमंद | भीतर बाहर अमंद | ||
बिखरी है नेह गंध | बिखरी है नेह गंध | ||
− | साँस | + | साँस-साँस में उतार दूँ |
ओ प्रिया, | ओ प्रिया, | ||
कह दो सुर सितार का | कह दो सुर सितार का | ||
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11:41, 21 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
जूड़े मे फूल टाँक दूँ
ओ प्रिया
कह दो तो हरसिंगार का
दूध नहाई जैसी रात
हुई साँवरी,
रह-रह के भिगो रही
पुरवाई बावरी,
भीग गया है तन-मन
पाँवों में है रुनझुन
अंग-अंग में उभार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो तो छंद प्यार का
खुली हुई साँकल है
खुली हुई खिडकियाँ
शोख हवाएँ देतीं
मंद-मंद थपकियाँ
भीतर बाहर अमंद
बिखरी है नेह गंध
साँस-साँस में उतार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो सुर सितार का