भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कह दो तो! / ओम निश्चल
Kavita Kosh से
जूड़े मे फूल टाँक दूँ
ओ प्रिया
कह दो तो हरसिंगार का
दूध नहाई जैसी रात
हुई साँवरी,
रह-रह के भिगो रही
पुरवाई बावरी,
भीग गया है तन-मन
पाँवों में है रुनझुन
अंग-अंग में उभार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो तो छंद प्यार का
खुली हुई साँकल है
खुली हुई खिडकियाँ
शोख हवाएँ देतीं
मंद-मंद थपकियाँ
भीतर बाहर अमंद
बिखरी है नेह गंध
साँस-साँस में उतार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो सुर सितार का