"अजगरी संत्रास / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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विष-बुझा परिहास | विष-बुझा परिहास | ||
आदमखोर | आदमखोर | ||
− | + | शब्दहीन वेदना को | |
− | + | बींधता सायास | |
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खींचता है अजगरी संत्रास भूखा | खींचता है अजगरी संत्रास भूखा | ||
− | + | मुट्ठियों में बंद खालीपन | |
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धमनियों में तैर जाता बाँस का बन । | धमनियों में तैर जाता बाँस का बन । | ||
टीसते हैं खिड़कियों के | टीसते हैं खिड़कियों के |
03:07, 8 जनवरी 2012 का अवतरण
तन गई हैं इस क़दर युग मान्यताएँ
घुट गया है गीत का जीवन
अरे, मन !
साँस धीमे ले बढ़ेगी और जकड़न
सामने है व्यंग्य, पीछे
विष-बुझा परिहास
आदमखोर
शब्दहीन वेदना को
बींधता सायास
दुहरा शोर
खींचता है अजगरी संत्रास भूखा
मुट्ठियों में बंद खालीपन
अचेतन
धमनियों में तैर जाता बाँस का बन ।
टीसते हैं खिड़कियों के
प्रश्-सूचक चिन्ह
सारी रात
टूटता अपनत्व कुंठित
व्योम से विच्छिन्न
उल्कापात
थक गई है नब्ज जब संवेदना की
क्या करे कमज़ोर संजीवन
निवेदन
ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन।