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"माँ / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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दु:खों का दही विलोती है | दु:खों का दही विलोती है | ||
19:51, 18 मार्च 2012 का अवतरण
घर की दुनिया
माँ होती है
माखन सुख का
देने को वह
दु:खों का दही विलोती है
पूरे अनुभव एक तरफ हैं
मइया के अनुभव
के आगे
जब भी उसके पास गए हम
लगा अँधेरे में
हम जागे
अपने मन की
परती भू पर
शबनम आशा की बोती है
घर की दुनिया माँ होती है
उसके हाथ का रूखा-सूखा-
भी हो जाता
है काजू-सा
कम शब्दों में खुल जाती वह
ज्यों संस्कृति की
हो मंजूषा
हाथ पिता का
खाली हो तो
छिपी पोटली का मोती है
घर की दुनिया माँ होती है