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माँ / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
घर की दुनिया माँ होती है
खुशियों की क्रीम
परसने को
दुःखों का दही बिलोती है
पूरे अनुभव
एक तरफ हैं
मइया के अनुभव
के आगे
जब भी उसके
पास गए हम
लगा अँधेरे में
हम जागे
अपने मन की
परती भू पर
शबनम आशा की बोती है
घर की दुनिया माँ होती है
उसके हाथ का
रूखा-सूखा-
भी हो जाता
है काजू-सा
कम शब्दों में
खुल जाती वह
ज्यों संस्कृति की
हो मंजूषा
हाथ पिता का
खाली हो तो
छिपी पोटली का मोती है
घर की दुनिया माँ होती है