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00:49, 8 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
वह पानी है
और उसके पास बातों के कंकड़ हैं
वह गहरी ही गहरी होती जाती है
उससे यह सहा नहीं जाता है
वह कहीं खो जाती है
वह बात का कंकड़-सा डालकर
उसे चौंकाता है
वह सिहर जाती है
वह उसके साथ
यों ही रहती है