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वे / प्रभात

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वह पानी है
और उसके पास बातों के कंकड़ हैं

वह गहरी ही गहरी होती जाती है
उससे यह सहा नहीं जाता है

वह कहीं खो जाती है
वह बात का कंकड़-सा डालकर
उसे चौंकाता है

वह सिहर जाती है
वह उसके साथ
यों ही रहती है