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उतनी ही जगह में / कंस्तांतिन कवाफ़ी
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09:11, 2 जुलाई 2012
मकानों, कहवाघरों और पास-पड़ोस का परिवेश
जिसे मैंने देखा और
सालों-साल
जिससे होकर गुज़रा :
मैंने तुम्हें सिरजा अपनी ख़ुशी
अपनी उदासी के दौरान
बहुत सारी घटनाओं से
बहुत-से ब्योरों से
और अब तुम-सब
अनिल जनविजय
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