भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बंसत / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> जीवन में हमारे आत…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नीरज दइया  
 
|रचनाकार=नीरज दइया  
|संग्रह=
+
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
जीवन में हमारे
 
जीवन में हमारे
 
आता है प्रेम बसंत की तरह  
 
आता है प्रेम बसंत की तरह  
और प्रेम ही लाता है- बसंत
+
और प्रेम ही लाता है- बसंत।
 
वर्ष में कुछ खास दिन होते हैं-
 
वर्ष में कुछ खास दिन होते हैं-
जब होता है प्रेम ।
+
जब होता है प्रेम।
  
 
उदासी को दूर करता  
 
उदासी को दूर करता  
 
प्रेम उदित होता है
 
प्रेम उदित होता है
 
सूर्य की भांति
 
सूर्य की भांति
और जगमगाता है जीवन
+
और जगमगाता है जीवन।
  
हम तब जान पाते हैं
 
जब हमारे ही हाथों
 
अंतरिक्ष में पतंग बनकर
 
लहराता है प्रेम
 
 
प्रेम की पतंग
 
रचती है भीतर राग
 
दिखते हैं बाहर रंग
 
 
सुरीले संगीत में डूबा
 
नृत्य करता है मन
 
और प्रेम में बंधे
 
उडने लगते हैं हम
 
 
कुछ भी नहीं होता हमारे बस में
 
जब कटती है डोर
 
धड़ाम से गिरते हैं हम-
 
ज़मीन पर
 
 
करते नहीं प्रतीक्षा
 
करते नहीं प्रतीक्षा
 
फिर भी लौट-लौट आता है
 
फिर भी लौट-लौट आता है
पुन: पुन: जीवन में प्रेम
+
जीवन में पुन: पुन: प्रेम
तभी बार-बार लौटता है बसंत !
+
तभी लौटता है
 +
बार-बार बसंत!
 +
हर बार बसंत!!
 
</poem>
 
</poem>

06:30, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

जीवन में हमारे
आता है प्रेम बसंत की तरह
और प्रेम ही लाता है- बसंत।
वर्ष में कुछ खास दिन होते हैं-
जब होता है प्रेम।

उदासी को दूर करता
प्रेम उदित होता है
सूर्य की भांति
और जगमगाता है जीवन।

करते नहीं प्रतीक्षा
फिर भी लौट-लौट आता है
जीवन में पुन: पुन: प्रेम
तभी लौटता है
बार-बार बसंत!
हर बार बसंत!!