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"छागदान / भीमनाथ झा" के अवतरणों में अंतर

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अपन गामक मरिचा बाध
+
के कहलक जे-
कि झौआकोठी गाछी दिस
+
नौटंकी एहि बेर नहि भ’ सकलै कोइलखमे...
नवी पोखरिक मोहार
+
टाँगल नहि जा सकलै नाटकोक पर्दा...
कि बनकुबा बाबाक थान दिस
+
नागाड़ा पर चोट पड़ि नहि सकलै...
जार-ठार पड़ौ कि होउ गुमकी-झरकी
+
दुर्योधन-दुश्शासनक पोशाक
उमड़ि अबौ मेघ कि रमकौ बासन्ती सिहकी
+
सैंतले रहि गेलै बकासमे...
अहलभोरेसँ पसर चरबैत
+
देखि नहि सकल भद्रकाली,
महिसिक पीठ पर बैसल कि ओकर रीढ़क चमड़ी बकुटने
+
तमासा एहि बेर दशमीमे....
लम्बमान भेल चरबाह
+
ने नाटक ने नौटंकी
अलबेला स्वरमे संगीत-संधान करै छल।
+
किछु ने भ’ सकलै नवमीक राति...
कने थम्हि क’-
+
नगाड़ा एहि बेर गरमा नहि सकलै एक टोलक...
माल-जालकें चर’ लेल अनेर छोड़ि दैत
+
आ मचलैत किशोर दल उन्मुक्त तान हेरै छल।
+
फेर कने थमिह क’-
+
छागर-पाठी हँकैत टेल्ह सभ
+
अनायासे कोनो भनिता ध’ लै छल।
+
फेर कने थमिह क’-
+
कोनो प्रौढ़
+
धएने कान्ह पर कोदारि
+
आ कोनो बूढ़
+
छिट्टा-खुरपीकें माथ पर उघने चलैत
+
अल्हा-रूदल कि लैला-मजनू
+
कि लोरिक-बनिजारा कि दीनाभद्री
+
कि राय रनपाल महागाथाक टुकड़ी अलापै छल।
+
अपन कानसँ ई सभ सुनैत रही जहिया।
+
तँ सत्ते कहै छी
+
बुझि पड़ए हमरा
+
प्रकृति जेना अपनहिंसँ भास उठा लेने हो !
+
  
अपन गामक ओहि दलानसँ कि ओहि खरिहानसँ
+
कत’सँ पड़ल ई सभ स्वर
सितलपाटी पर कि खिनहरि-चटकुन्नी पर
+
हमर कानमे ?
खजुरपटिया पर कि फटलाहा सपटा पर
+
अविश्वसनीय..
घोदमोद बैसल चटिया सभक
+
खाँत रटैत कि ककहरा घोंखैत
+
उठैत अनघोल
+
जहिया साँझ-प्रात कानमे पड़ैत रहए
+
तँ सत्ते कहै छी
+
बुझि पड़ए हमरा
+
सोहरा रहल होथिन अहा ! नेना सभक चानि
+
स्वयं भारती
+
  
अपन गाम
+
हम तँ स्वयं सुनि अएलहुँ
ओहि दरबज्जा पर कि ओहि गोला पर
+
एहि दशमीमे
भगवतीनाथक ओहि चबूतरा पर
+
घर-घरसँ उठैत मंत्रोच्चार...
कि स्कूलक ओहि मैदानमे
+
मन्दिरक चारू दिस गज्जल
खादीभण्डारक ओसार पर
+
दुर्गापाठी गौआँ भक्तसमूहक
कि चौक परक दोकानमे
+
गगन-भेदन करैत
अस्पतालक आगाँमे
+
ढोंढ़ीसँ अबैत स्वरक असि-झंकार-
कि युवक संघक अँगनैमे
+
‘या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता
तेसर पहर दिन झुकिते
+
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’
सतरंजक स’हपर कि कोनो गुलछर्राक त’ह पर
+
स्वयं देखि अएलहुँ एहि दशमीमे
गाम भरिक सभ फरिक
+
दुमस्सू-तिनमस्सू
सभ तूरक लग-दूरक
+
खिच्चा छागरक बलि पड़ैत घड़ी-घड़ी...
सभ भाँतिक, सभ काँतिक
+
ओकर मूड़ी कटल धड़
नातिसँ ल’ क’ नाना धरि
+
छटपटाइत..
कतहु क्यो अपन बात पर जोर दैत
+
चारू खूर हवामे तनाइत
तँ कतहु खाँटी गप्पक बोर दैत
+
हवामे किछु लिखैत
कतहु क्यो एकान्ती करैत
+
...खसैत...फेर उठैत....घड़ी-घड़ी....
तँ कतहु काव्यचर्चा होइत
+
मन्दिरक परिसर रक्तस्नात होइत
उमड़ैत हास-उल्लासक मानसरोवरमे
+
-घड़ी-घड़ी...
अवगाहन करैत
+
भक्तलोकनिक आनन
अपन समाजकें देखैत रही जहिया
+
गर्म रक्तक गाढ़ ठोपसँ
तँ सत्ते कहै छी
+
भगवतीक पीड़ी पर कान पटपटबैत
बुझि पड़ए हमरा
+
दाँत कीचै-घड़ी-घड़ी...
जेना गाछक सिंहार
+
भद्रकाली ओकरा दिस
तुबि-तुबि क’ झहरै छल !
+
एकटक ताकि रहल छलथिन....
 +
से साफ-साफ देखि आएल रही हम
 +
आ तही काल
 +
मन्दिरक प्राँगणमे
 +
भक्तगणक गुरू-गम्भीर स्वरकें
 +
गुँजैत सुनि आएल रही-
 +
‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
 +
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’
 +
-घड़ी-घड़ी...
 +
भगवतीक अधर
 +
तखन विस्फारित भ’ जाइत छलनि
 +
से साफ-साफ देखने रही हम
 +
आ लगले छोड़ि देने रही गाम....
 +
सूनल पछाति-
 +
ओहि राति
 +
जगन्माया लीला देखा देने रहथिकृ
 +
दुमस्सू-तिनमस्सू छागर
 +
एक नहि
 +
दू नहि
 +
तीन-तीन टा
 +
कटि चुकल छल....
 +
हाथ-पयै हवामे तनाइत
 +
शून्यमे किछु लिखि रहल छल...
 +
भ’ गेल छल मन्दिरक परिसर
 +
रक्तस्नात ओहि राति....
  
अपन गाममे
+
भद्रकाली स्वयं
ड्योढ़ीटाटक भीतरसँ अबैत
+
नाटक खेला रहलि छली एहि बेर....
ललना लोकनिक कण्ठ-मधुमे बोरल
+
नौटंकीक नगाड़ा अपने हाथसँ
विद्यापति-मधुप-रवीन्द्रक गीतामृत
+
पीटि रहलि छली...
पीबैत रही जहिया
+
दुर्योधन-दुश्शासनक पोशाक
तँ सत्ते कहै छी
+
दनादन बकसासँ बहार कर’ लगली....
बुझि पड़ए हमरा
+
कि ता मोन पड़ि गेलनि
सुरमे जेना शरदा अपनहिं समा गेल होथि !
+
अपन पीड़ी लगक दिनका दृश्य
 +
खिच्चा छागरक पटपटाएक कान...
 +
दाँत कीचब...
 +
आ फेर हुनक अधर विस्फारित भ’ गेलनि....
 +
कटाइत रहल अछि सभ दिन
 +
छागरे दशमीमे...
 +
भद्रकालीकें ओकरे रक्त
 +
मने, सर्वाधिक प्रिय भ’ गेल छनि आब....
  
अपन गाममे
+
आब तँ
जनिका पर नजरि पड़ए
+
मधु-कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर
जनिकें गप्प होअए-
+
स्वयं मुधकलश ल’ क’
रहथु गोनू बाबा कि जयनन्दन बाबा
+
भगवतीक आराधनामे
जवान किसुन बाबू की बलदेव बाबू
+
निमग्न रह’ लागल अछि...
भुल्लु बाबू कि कुल्लू बाबू
+
ओकरा लेल उठल
जिबछी कि किसुनमा-
+
रक्तपिपासु अमोघ स्वर्ग
सभमे आपकता
+
तखन भद्र-अबोध
सभ ठाँ सिनेह-भाव
+
दुमस्सू-तिनमस्सू
सर्वत्र ममता...
+
खिच्चा छागर पर नहि
जेम्हरे जाइ तेम्हरे
+
तँ कत’ बजरनु
जे भेटए सैह
+
भद्रकालीक
सत्ते कहै छी
+
आब ?
ओहि उद्गार-आपकतामे
+
बुझि पड़ए हमरा
+
जेना अपन हृदय सुमन
+
हमरा पर झहरा देथि !
+
आइयो अपन गाम अछि वैह
+
अपन डीह-डाबर, अपन धाम अछि वैह
+
ओहिना सभक घर-आँगन
+
ओहिना दरबज्जा, ओहिना दलान
+
आइयो लगैत अछि मरिचासँ
+
बनकूबा थानसँ
+
ओहनाहे स्वरा-संधान भोर-साँझ
+
आइयो गुँजैत अछि खरिहान पर
+
चटिया सभक ककहरा-पाठ आइयो भगवती थानमे
+
जुटैत अछि नानासँ नाति धरि
+
(क्यो छरपैत तँ क्यो ठेंगा टेकैत)
+
 
+
कतोक आँगनसँ
+
विद्यापति-मधुर गुंजन
+
आइयो कतेको गोटे हमरासँ पुछैत अछि
+
कुशल-क्षेम
+
हाल-चाल
+
मुदा सत्ते कहै छी
+
आइ एहि वाणीमे
+
भेटै-ए कत्तौ नहि आह ! मुक्त हास आब
+
दूर-दूर धरि हृदय-सरितामे तकैत छी
+
गोर-गोर लोकक
+
-कमल मुदा मौलाएल !
+
 
+
आइयो अपन गाममे
+
ढोल पर, डम्फा पर थाप तँ पड़िते अछि
+
मुदा आब ओकर स्वर
+
जेना विरस-विरस बुझाइए !
+
रंग तँ आइयो खेलाएले जाइत अछि
+
आब मुदा, लोकक मुँह
+
अरे ! बेदरंग भ’ जाइत छैक !
+
बसन्त अपन गाममे तँ आइयो अबैत अछि
+
मुदा सलगाँस मुँह लोक झपनहिं रहैत अछि !
+
कुशल-क्षेम पुछनिहार
+
आइयो भेटैत अछि
+
मुदा आँखिक पुतरी ओकर कोनादन नचैत छैक !
+
लोकक चेहरा तँ चीन्हल बुझि पड़ै-ए
+
आइ अपन गामे मुदा अनभुआर लगैत अछि।
+
 
</poem>
 
</poem>

07:00, 5 जून 2013 के समय का अवतरण

के कहलक जे-
नौटंकी एहि बेर नहि भ’ सकलै कोइलखमे...
टाँगल नहि जा सकलै नाटकोक पर्दा...
नागाड़ा पर चोट पड़ि नहि सकलै...
दुर्योधन-दुश्शासनक पोशाक
सैंतले रहि गेलै बकासमे...
देखि नहि सकल भद्रकाली,
तमासा एहि बेर दशमीमे....
ने नाटक ने नौटंकी
किछु ने भ’ सकलै नवमीक राति...
नगाड़ा एहि बेर गरमा नहि सकलै एक टोलक...

कत’सँ पड़ल ई सभ स्वर
हमर कानमे ?
अविश्वसनीय..

हम तँ स्वयं सुनि अएलहुँ
 एहि दशमीमे
घर-घरसँ उठैत मंत्रोच्चार...
मन्दिरक चारू दिस गज्जल
दुर्गापाठी गौआँ भक्तसमूहक
गगन-भेदन करैत
ढोंढ़ीसँ अबैत स्वरक असि-झंकार-
‘या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’
स्वयं देखि अएलहुँ एहि दशमीमे
दुमस्सू-तिनमस्सू
खिच्चा छागरक बलि पड़ैत घड़ी-घड़ी...
ओकर मूड़ी कटल धड़
छटपटाइत..
चारू खूर हवामे तनाइत
हवामे किछु लिखैत
...खसैत...फेर उठैत....घड़ी-घड़ी....
मन्दिरक परिसर रक्तस्नात होइत
-घड़ी-घड़ी...
भक्तलोकनिक आनन
गर्म रक्तक गाढ़ ठोपसँ
भगवतीक पीड़ी पर कान पटपटबैत
दाँत कीचै-घड़ी-घड़ी...
भद्रकाली ओकरा दिस
एकटक ताकि रहल छलथिन....
से साफ-साफ देखि आएल रही हम
आ तही काल
मन्दिरक प्राँगणमे
भक्तगणक गुरू-गम्भीर स्वरकें
गुँजैत सुनि आएल रही-
‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’
-घड़ी-घड़ी...
भगवतीक अधर
तखन विस्फारित भ’ जाइत छलनि
से साफ-साफ देखने रही हम
आ लगले छोड़ि देने रही गाम....
सूनल पछाति-
ओहि राति
जगन्माया लीला देखा देने रहथिकृ
दुमस्सू-तिनमस्सू छागर
एक नहि
दू नहि
तीन-तीन टा
कटि चुकल छल....
हाथ-पयै हवामे तनाइत
शून्यमे किछु लिखि रहल छल...
भ’ गेल छल मन्दिरक परिसर
रक्तस्नात ओहि राति....

भद्रकाली स्वयं
नाटक खेला रहलि छली एहि बेर....
नौटंकीक नगाड़ा अपने हाथसँ
पीटि रहलि छली...
दुर्योधन-दुश्शासनक पोशाक
दनादन बकसासँ बहार कर’ लगली....
कि ता मोन पड़ि गेलनि
अपन पीड़ी लगक दिनका दृश्य
खिच्चा छागरक पटपटाएक कान...
दाँत कीचब...
आ फेर हुनक अधर विस्फारित भ’ गेलनि....
कटाइत रहल अछि सभ दिन
छागरे दशमीमे...
भद्रकालीकें ओकरे रक्त
मने, सर्वाधिक प्रिय भ’ गेल छनि आब....

आब तँ
मधु-कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर
स्वयं मुधकलश ल’ क’
भगवतीक आराधनामे
निमग्न रह’ लागल अछि...
ओकरा लेल उठल
रक्तपिपासु अमोघ स्वर्ग
तखन भद्र-अबोध
दुमस्सू-तिनमस्सू
खिच्चा छागर पर नहि
तँ कत’ बजरनु
भद्रकालीक
आब ?