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छागदान / भीमनाथ झा

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के कहलक जे-
नौटंकी एहि बेर नहि भ’ सकलै कोइलखमे...
टाँगल नहि जा सकलै नाटकोक पर्दा...
नागाड़ा पर चोट पड़ि नहि सकलै...
दुर्योधन-दुश्शासनक पोशाक
सैंतले रहि गेलै बकासमे...
देखि नहि सकल भद्रकाली,
तमासा एहि बेर दशमीमे....
ने नाटक ने नौटंकी
किछु ने भ’ सकलै नवमीक राति...
नगाड़ा एहि बेर गरमा नहि सकलै एक टोलक...

कत’सँ पड़ल ई सभ स्वर
हमर कानमे ?
अविश्वसनीय..

हम तँ स्वयं सुनि अएलहुँ
 एहि दशमीमे
घर-घरसँ उठैत मंत्रोच्चार...
मन्दिरक चारू दिस गज्जल
दुर्गापाठी गौआँ भक्तसमूहक
गगन-भेदन करैत
ढोंढ़ीसँ अबैत स्वरक असि-झंकार-
‘या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’
स्वयं देखि अएलहुँ एहि दशमीमे
दुमस्सू-तिनमस्सू
खिच्चा छागरक बलि पड़ैत घड़ी-घड़ी...
ओकर मूड़ी कटल धड़
छटपटाइत..
चारू खूर हवामे तनाइत
हवामे किछु लिखैत
...खसैत...फेर उठैत....घड़ी-घड़ी....
मन्दिरक परिसर रक्तस्नात होइत
-घड़ी-घड़ी...
भक्तलोकनिक आनन
गर्म रक्तक गाढ़ ठोपसँ
भगवतीक पीड़ी पर कान पटपटबैत
दाँत कीचै-घड़ी-घड़ी...
भद्रकाली ओकरा दिस
एकटक ताकि रहल छलथिन....
से साफ-साफ देखि आएल रही हम
आ तही काल
मन्दिरक प्राँगणमे
भक्तगणक गुरू-गम्भीर स्वरकें
गुँजैत सुनि आएल रही-
‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’
-घड़ी-घड़ी...
भगवतीक अधर
तखन विस्फारित भ’ जाइत छलनि
से साफ-साफ देखने रही हम
आ लगले छोड़ि देने रही गाम....
सूनल पछाति-
ओहि राति
जगन्माया लीला देखा देने रहथिकृ
दुमस्सू-तिनमस्सू छागर
एक नहि
दू नहि
तीन-तीन टा
कटि चुकल छल....
हाथ-पयै हवामे तनाइत
शून्यमे किछु लिखि रहल छल...
भ’ गेल छल मन्दिरक परिसर
रक्तस्नात ओहि राति....

भद्रकाली स्वयं
नाटक खेला रहलि छली एहि बेर....
नौटंकीक नगाड़ा अपने हाथसँ
पीटि रहलि छली...
दुर्योधन-दुश्शासनक पोशाक
दनादन बकसासँ बहार कर’ लगली....
कि ता मोन पड़ि गेलनि
अपन पीड़ी लगक दिनका दृश्य
खिच्चा छागरक पटपटाएक कान...
दाँत कीचब...
आ फेर हुनक अधर विस्फारित भ’ गेलनि....
कटाइत रहल अछि सभ दिन
छागरे दशमीमे...
भद्रकालीकें ओकरे रक्त
मने, सर्वाधिक प्रिय भ’ गेल छनि आब....

आब तँ
मधु-कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर
स्वयं मुधकलश ल’ क’
भगवतीक आराधनामे
निमग्न रह’ लागल अछि...
ओकरा लेल उठल
रक्तपिपासु अमोघ स्वर्ग
तखन भद्र-अबोध
दुमस्सू-तिनमस्सू
खिच्चा छागर पर नहि
तँ कत’ बजरनु
भद्रकालीक
आब ?