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इसी जनम में / संजय कुंदन

344 bytes removed, 08:20, 13 जुलाई 2013
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नींबू के टुकड़े को कस कर निचोड़ रहा हूँ दाल वह जो मन की चहचहाहट परगुनगुनाता थाकि थोड़ा रुच जाए खानामन की लहरों में डूबता-उतराता थालंबे ज्वर से उठने पकता रहता था मन की आँच मेंवह जो चला गया एक दिनमन के बाद खोज रहा हूँ फिर से स्वादघोड़े की रास थामेसाँवले बादलों में न जाने कहाँवह मैं ही था
थोड़ा खट्टा रस फिर जोड़ सकता है अन्न से रिश्ताविश्वास नहीं होताएक शीतल चमकदार नींबू पर इतनी ज्यादा टिक गई है उम्मीद किलगता है वही मेरे कपड़े निकाल लाएगामेरा चश्मा और थैला भीवह एक रिक्शे वाले को आवाज देगा और उसे हिदायत देगाइन्हें ठीक से ले जाना भाईयह इसी जनम की बात है।
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