भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भटकते सपने / सविता सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी }} खोते गए हैं मेरे ...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=सविता सिंह | |रचनाकार=सविता सिंह | ||
− | |संग्रह=नींद थी और रात थी | + | |संग्रह=नींद थी और रात थी / सविता सिंह |
}} | }} | ||
17:21, 6 नवम्बर 2007 के समय का अवतरण
खोते गए हैं मेरे साथ जन्मे वे सारे सपने
जो मेरे साथी थे
जिनको बचाए रखा नींद में मैंने
जैसे बचाती है नींद सपनों को अक्सर
अब मेरी याद में आँखों की खोती रोशनी की तरह
उनके खोने की उदासी बचती है
ख़ाली सड़क पर ग़ुम होती किसी प्रिय की पदचाप जैसे
मुझे नहीं मालूम वे कब खोए और कैसे
बस यह जानती हूँ वे हैं अब भी कहीं
किसी और की नींद में भटकते
याद करते पिछले अभिसारों को