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सौभाग्य / तादेयुश रोज़ेविच

No change in size, 05:46, 28 अप्रैल 2014
<poem>
कैसा सौभाग्य कि जंगलों में
रसभरियां रसभरियाँ चुन सकता हूँ
मेरा ख़याल था कि
न अब जंगल हैं न रसभरियाँ
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