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"अब तो नींद / पूर्णिमा वर्मन" के अवतरणों में अंतर

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अब इस दिल को कौन संभाले <br>
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दूर-दूर हो अलग चलेंगे<br>
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दो बातों तक को तरसेंगे<br>
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आधी रातें घनी चाँदनी <br>
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आँगन सूना मौसम भारी <br><br>
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नहीं पता थी यह लाचारी
 
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नहीं पता थी यह लाचारी<br><br>
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12:46, 27 जून 2014 के समय का अवतरण

अब तो नींद नहीं आएगी
देख सिरहाने याद तुम्हारी
हमने तो रिश्ता बोया था
प्यार न जाने कब उग आया
कब सींचा कब हरा हो गया
कैसे कर दी शीतल छाया
अब इस दिल को कौन संभाले
ना कांधा ना बांह तुम्हारी

कब जाना था साथ बंधे तो
दूर-दूर हो अलग चलेंगे
सातों कसमें खाने वाले
दो बातों तक को तरसेंगे
आधी रातें घनी चाँदनी
आँगन सूना मौसम भारी

दुनिया छोटी है, सुनते थे
दूर न कोई जा पाता है
समय लगा कर पंख, कहा था
पल भर में ही उड़ जाता है
पर पल भी युग बन जाता है
नहीं पता थी यह लाचारी