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अब तो नींद / पूर्णिमा वर्मन
Kavita Kosh से
अब तो नींद नहीं आएगी
देख सिरहाने याद तुम्हारी
हमने तो रिश्ता बोया था
प्यार न जाने कब उग आया
कब सींचा कब हरा हो गया
कैसे कर दी शीतल छाया
अब इस दिल को कौन संभाले
ना कांधा ना बांह तुम्हारी
कब जाना था साथ बंधे तो
दूर-दूर हो अलग चलेंगे
सातों कसमें खाने वाले
दो बातों तक को तरसेंगे
आधी रातें घनी चाँदनी
आँगन सूना मौसम भारी
दुनिया छोटी है, सुनते थे
दूर न कोई जा पाता है
समय लगा कर पंख, कहा था
पल भर में ही उड़ जाता है
पर पल भी युग बन जाता है
नहीं पता थी यह लाचारी