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19:05, 29 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
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क्लांत तन-मन रे कलापी तीक्ष्ण ज्वाला मे झुलसता
बर्ह में धर शीश बैठे सर्प से कुछ न कहता,
भद्रमोथा सहित कर्म शुष्क-सर को दीर्घ अपने
पोतृमण्डल से खनन कर भूमि के भीतर दुबकने
वराहों के यूथ रत हैं, सूर्य्य-ज्वाला में सुलग कर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!