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"अनिँदो रात / रमेश क्षितिज" के अवतरणों में अंतर
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22:18, 23 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
आफूलाई भुलिरहेँ बिर्सनेलाई सम्झिरहेँ
के के सोचेँ रातभरि बिउँझिरहेँ–बिउँझिरहेँ !
जिस्क्याइरह्यो जुनेलीले बतासले पोलिरह्यो
उध्रिएको छातिभित्र रातले बल्छी खेलिरह्यो
कहाँकहाँ मर्म थियो तीर आई बिझिरह्यो
निदाउँछु भन्दै रहेँ सिरानी नै भिजिरह्यो
टुक्र्याइरहेँ आफैँलाई च्यातिएको हेरिरहेँ
फर्कन्न जो फेरि अब उसैलाई कुरिरहेँ
कति थिए घाउहरू एकान्तमा गनिरहेँ
गुन्गुनाएँ आफ्नो गीत आफैँले नै सुनिरहेँ