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आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र

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/* रचनाएँ */
* [[काँटों की बस्ती फूलों की, खु़शबू से तर है / डी. एम. मिश्र]]
* [[गुलाबों की नर्इ क़िस्मों से वो खु़शबू नहीं आती /डी. एम मिश्र]]
* [[दूर से आकर हमारा वो क़रीबी हो गया / डी. एम. मिश्र]]
* [[घनी है रात मगर चल पड़े अकेले हैं / डी. एम मिश्र]]
* [[सेाया है इस तरह से कि उठना मुहाल है / डी. एम. मिश्र]]
* [[थोडा़-सा मुस्काने में क्यों इतनी देर लगा दी / डी. एम. मिश्र]]
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