भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अरी पवन !/ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= ज्योत्स्ना शर्मा |संग्रह= }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category: ताँका]]
 
[[Category: ताँका]]
 +
 
<poem>
 
<poem>
 +
33
 +
झीनी चादर
 +
सिहरा सा सूरज
 +
ढूँढे अलाव।
 +
क्यों हुआ हाल ऐसा
 +
बड़ा खाता था ताव !
 +
34
 +
ठिठुरी धूप
 +
ढूँढे है ,कहाँ गया ?
 +
सूरज भूप ।
 +
भोर ले के आ गई
 +
क्यों ये ठंडा-सा सूप ?
 +
35
 +
तुहिन पुष्प
 +
अम्बर बरसाए
 +
धरा लजाए ।
 +
नवोढ़ा , सिमटी -सी,
 +
ज्यों छुपी -छुपी जाए ।
 +
36
 +
रिश्ते प्यार के
 +
चाहा था फूलें- फलें
 +
सँवरें रहें 
 +
क्या जानूँ कैसे हुए
 +
अमर बेल बनें
 +
37
 +
चुनती रही
 +
काँटे सदा राह से
 +
और वे रहे
 +
इतने बेफिकर
 +
मेरी आहों  से कैसे !
 +
38
 +
अरी पवन !
 +
ली खुशबू उधार
 +
कली -फूल से
 +
ज़रा कर तो प्यार
 +
न कर ऐसे वार !
 +
39
 +
मंज़ूर मुझे
 +
मेरे काँधे बनते
 +
तेरी सीढ़ियाँ
 +
तूने दुनियाँ रची
 +
मिटा मेरा आशियाँ
 +
40
 +
सजे चमन
 +
विविध रंग पुष्प
 +
खिलखिलाएँ
 +
आशा हो नयन में
 +
सदा सन्मार्ग पाएँ ।
  
 
</poem>
 
</poem>

16:50, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

33
झीनी चादर
सिहरा सा सूरज
ढूँढे अलाव।
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव !
34
ठिठुरी धूप
ढूँढे है ,कहाँ गया ?
सूरज भूप ।
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप ?
35
तुहिन पुष्प
अम्बर बरसाए
धरा लजाए ।
नवोढ़ा , सिमटी -सी,
ज्यों छुपी -छुपी जाए ।
36
रिश्ते प्यार के
चाहा था फूलें- फलें
सँवरें रहें
क्या जानूँ कैसे हुए
अमर बेल बनें
37
चुनती रही
काँटे सदा राह से
और वे रहे
इतने बेफिकर
मेरी आहों से कैसे !
38
अरी पवन !
ली खुशबू उधार
कली -फूल से
ज़रा कर तो प्यार
न कर ऐसे वार !
39
मंज़ूर मुझे
मेरे काँधे बनते
तेरी सीढ़ियाँ
तूने दुनियाँ रची
मिटा मेरा आशियाँ
40
सजे चमन
विविध रंग पुष्प
खिलखिलाएँ
आशा हो नयन में
सदा सन्मार्ग पाएँ ।