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अरी पवन !/ज्योत्स्ना शर्मा
Kavita Kosh से
					
										
					
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झीनी चादर
सिहरा सा सूरज
ढूँढे अलाव।
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव !
34
ठिठुरी धूप
ढूँढे है ,कहाँ गया ?
सूरज भूप ।
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप ?
35
तुहिन पुष्प
अम्बर बरसाए
धरा लजाए ।
नवोढ़ा , सिमटी -सी,
ज्यों छुपी -छुपी जाए ।
36
रिश्ते प्यार के 
चाहा था फूलें- फलें 
सँवरें रहें  
क्या जानूँ कैसे हुए 
अमर बेल बनें
37
चुनती रही 
काँटे सदा राह से 
और वे रहे 
इतने बेफिकर 
मेरी आहों  से कैसे !
38
अरी पवन !
ली खुशबू उधार 
कली -फूल से 
ज़रा कर तो प्यार 
न कर ऐसे वार !
39
मंज़ूर मुझे 
मेरे काँधे बनते 
तेरी सीढ़ियाँ
तूने दुनियाँ रची 
मिटा मेरा आशियाँ 
40
सजे चमन 
विविध रंग पुष्प 
खिलखिलाएँ
आशा हो नयन में 
सदा सन्मार्ग पाएँ ।
 
	
	

