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"तुझको बाँचूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | पेड़ टूटके गिरा | ||
+ | अंगूर खाए। | ||
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+ | घर में घुसे | ||
+ | कोना -कोना झाँकके | ||
+ | आग लगाई। | ||
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+ | विषाक्त बीज | ||
+ | ज़हर में उबाले | ||
+ | रिश्ते अपने। | ||
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+ | अमृत लुटा | ||
+ | बड़ा धन मिला है | ||
+ | बेमौत अन्त। | ||
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+ | दुःख था बाँटा | ||
+ | इसी से गड़ गया | ||
+ | कुछ को कॉंटा । | ||
+ | 19 | ||
+ | संवादहीन | ||
+ | भीतर का भूकम्प | ||
+ | छुपा न कभी । | ||
+ | 20 | ||
+ | '''तुझको बाँचूँ''' | ||
+ | मेरे हर पन्ने में | ||
+ | नाम तुम्हारा। | ||
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07:46, 13 नवम्बर 2018 के समय का अवतरण
11
बिषैली हवा
क्यों हो गई पल में
क्या दी बद्दुआ।
12
अर्जित ही थे
ढह गए पल में
ढूह रेतीले।
13
अपने लूटें
किस दर पे जाएँ
लूट लिखाएँ।
14
लोमड़ी हँसी
पेड़ टूटके गिरा
अंगूर खाए।
15
घर में घुसे
कोना -कोना झाँकके
आग लगाई।
16
विषाक्त बीज
ज़हर में उबाले
रिश्ते अपने।
17
अमृत लुटा
बड़ा धन मिला है
बेमौत अन्त।
18
दुःख था बाँटा
इसी से गड़ गया
कुछ को कॉंटा ।
19
संवादहीन
भीतर का भूकम्प
छुपा न कभी ।
20
तुझको बाँचूँ
मेरे हर पन्ने में
नाम तुम्हारा।