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तुझको बाँचूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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11
बिषैली हवा
क्यों हो गई पल में
क्या दी बद्दुआ।
12
अर्जित ही थे
ढह गए पल में
ढूह रेतीले।
13
अपने लूटें
किस दर पे जाएँ
लूट लिखाएँ।
14
लोमड़ी हँसी
पेड़ टूटके गिरा
अंगूर खाए।
15
घर में घुसे
कोना -कोना झाँकके
आग लगाई।
16
विषाक्त बीज
ज़हर में उबाले
रिश्ते अपने।
17
अमृत लुटा
बड़ा धन मिला है
बेमौत अन्त।
18
दुःख था बाँटा
इसी से गड़ गया
कुछ को कॉंटा ।
19
संवादहीन
भीतर का भूकम्प
छुपा न कभी ।
20
तुझको बाँचूँ
मेरे हर पन्ने में
नाम तुम्हारा।