भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रतिमा रोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 54 | |
मर जाऊँगा, | मर जाऊँगा, | ||
तुम्हारे लिए जग में | तुम्हारे लिए जग में | ||
फिर आऊँगा ! | फिर आऊँगा ! | ||
− | + | 55 | |
पूजा न जानूँ | पूजा न जानूँ | ||
न देखा ईश्वर को | न देखा ईश्वर को | ||
तुमको देखा ! | तुमको देखा ! | ||
− | + | 56 | |
प्रतिमा रोई | प्रतिमा रोई | ||
कलुष न धो पाई, | कलुष न धो पाई, | ||
भक्तों ने बाँटे । | भक्तों ने बाँटे । | ||
− | + | 57 | |
व्यथा के घन | व्यथा के घन | ||
फट जाएँ जो कभी | फट जाएँ जो कभी | ||
पर्वत डूबें । | पर्वत डूबें । | ||
− | + | 58 | |
नाग-नागिन | नाग-नागिन | ||
लिपटे तन-मन | लिपटे तन-मन | ||
जकड़ा कण्ठ । | जकड़ा कण्ठ । | ||
− | + | 59 | |
पाषाण थे वे | पाषाण थे वे | ||
न पिंघले ,न जुड़े | न पिंघले ,न जुड़े | ||
टूटे न छूटे । | टूटे न छूटे । | ||
− | + | 60 | |
अश्रु ने कही | अश्रु ने कही | ||
सिर्फ तुमने बाँची | सिर्फ तुमने बाँची | ||
व्यथा की कथा। | व्यथा की कथा। | ||
− | + | 61 | |
घने अँधेरे | घने अँधेरे | ||
प्रकम्पित लौ तुम | प्रकम्पित लौ तुम | ||
किए उजेरे। | किए उजेरे। | ||
− | + | 62 | |
निराश मन | निराश मन | ||
चूम तेरे अधर | चूम तेरे अधर | ||
पाता जीवन | पाता जीवन | ||
− | + | 63 | |
नेह का नीर | नेह का नीर | ||
हर लेना प्रिय की | हर लेना प्रिय की |
23:08, 5 मई 2019 के समय का अवतरण
54
मर जाऊँगा,
तुम्हारे लिए जग में
फिर आऊँगा !
55
पूजा न जानूँ
न देखा ईश्वर को
तुमको देखा !
56
प्रतिमा रोई
कलुष न धो पाई,
भक्तों ने बाँटे ।
57
व्यथा के घन
फट जाएँ जो कभी
पर्वत डूबें ।
58
नाग-नागिन
लिपटे तन-मन
जकड़ा कण्ठ ।
59
पाषाण थे वे
न पिंघले ,न जुड़े
टूटे न छूटे ।
60
अश्रु ने कही
सिर्फ तुमने बाँची
व्यथा की कथा।
61
घने अँधेरे
प्रकम्पित लौ तुम
किए उजेरे।
62
निराश मन
चूम तेरे अधर
पाता जीवन
63
नेह का नीर
हर लेना प्रिय की
तू सारी पीर।
-0-