भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिमा रोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


54
मर जाऊँगा,
तुम्हारे लिए जग में
फिर आऊँगा !
55
पूजा न जानूँ
न देखा ईश्वर को
तुमको देखा !
56
प्रतिमा रोई
कलुष न धो पाई,
भक्तों ने बाँटे ।
57
व्यथा के घन
फट जाएँ जो कभी
पर्वत डूबें ।
58
नाग-नागिन
लिपटे तन-मन
जकड़ा कण्ठ ।
59
पाषाण थे वे
न पिंघले ,न जुड़े
टूटे न छूटे ।
60
अश्रु ने कही
सिर्फ तुमने बाँची
व्यथा की कथा।
61
घने अँधेरे
प्रकम्पित लौ तुम
किए उजेरे।
62
निराश मन
चूम तेरे अधर
पाता जीवन
63
नेह का नीर
हर लेना प्रिय की
तू सारी पीर।
-0-