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"मौसम / सुरेन्द्र स्निग्ध" के अवतरणों में अंतर

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बड़े शोख हैं फूल !
 
बड़े शोख हैं फूल !
  
(कैसे कहूँ, हुज़ूर, आपके अपने शरीर के अंग विशेष ने गन्दी हवा
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(कैसे कहूँ, हुज़ूर, आपके अपने शरीर के अँग-विशेष ने गन्दी हवा
 
छोड़ी है !)
 
छोड़ी है !)
 
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00:18, 7 मई 2019 के समय का अवतरण

आपने अभी क्यों पूछा मौसम का हालचाल !
क्या ख़ुशबू है फिजाँ में
चारों ओर फूल ही फूल —
लगता है उसी ने उड़ेल दी है ख़ुशबू आपकी पीठ पर
बड़े शोख हैं फूल !

(कैसे कहूँ, हुज़ूर, आपके अपने शरीर के अँग-विशेष ने गन्दी हवा
छोड़ी है !)