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नित रहे देश-नैया के कुशल खिवैया ऋषिवर दयानंद।।
तुमने जो फूँका मुत्रमंत्र, राष्ट्र के आँगल आँगन में साकार हुआ,
तुमने जिस मिट्टी के ढेले को छुआ वही अंगार हुआ,
तुमने जो बोये बीज देश रत है उनके ही बोने में,
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