महर्षि दयानंद / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
हे भारत वसुधा के गौरव! हे वेद-सुधा रस के प्रपात!
आक्रांत रूढ़ि-रोगों से क्षत-विक्षत समाज हित मलय वात!
हे पावनतम वैदिक संस्कृति के नगपति जैसे महास्तंभ!
हे अंधकार से घिरे देश में नई ज्योति के समारंभ!
कर दिया असंभव को संभव ऋषिवर तुमने बलिदानों से।
चेतनता के निर्झर फूटे, जड़ताओं की चट्टानों से।।
ये देश बना था धर्म-भीरू उज्ज्वल अतीत को बिसरा कर,
अज्ञान-तिमिर में भटक रहा था, पाखंडों को अपना कर,
वरदान रूप तुम प्रकट हुए, लेकर वेदों का तत्व-ज्ञान,
दिनकर की किरणों-सा तुमने प्रकटाया फिर स्वमिर्णम विहान,
तुमने आत्मा के अमरदीप में भरा स्नेह, बाती डाली।
सपनों के वन में बोल उठी आशा की कोकिल मतवाली।।
जय! साहस के मार्तण्ड प्रखर, जय भवसागर के महासेतु!
जय! दिव्य चेतना के शिखरों पर उड़ने वाले विजय-केतु!
जय! हे नरता के महाकाश, हिन्दू संस्कृति के कर्णधार!
आसेतु हिमाचल वेदध्वज फहराने वाले ऋषि उदार!
जय हो ऋषियों के ओज तेज, जय हो मुनियों के अमर ज्ञान!
जय ध्वस्त ग्रस्त मानवता के प्रश्नों के उज्ज्वल समाधान!
निज लक्ष्य-प्रप्ति के लिए लगाई तुमने प्राणों की बाज़ी,
हो कर परास्त लौटा, जो आया पोप या कि मुल्ला-काज़ी,
जो बना प्राण-घातक उसको भी विहँस क्षमा का दान दिया,
शरणागत दानव को तुमने, मानवता का वरदान दिया,
देवत्व मूर्ति तुम दया और आनंद लिए उर में अमंद।
नित रहे देश-नैया के कुशल खिवैया ऋषिवर दयानंद।।
तुमने जो फूँका मंत्र, राष्ट्र के आँगन में साकार हुआ,
तुमने जिस मिट्टी के ढेले को छुआ वही अंगार हुआ,
तुमने जो बोये बीज देश रत है उनके ही बोने में,
वेदों का ध्वज लहराता है दुनिया के कोने-कोने में ,
वह अमिट रहेगा संसृति में तुमने जो यश विस्तारा है।
पथ-दर्शक सबाका बना आज, ‘सत्यार्थ प्रकाश’ तुम्हारा है।।
तुम दुखी बाल-विधवाओं के भोले मुख की मुस्कान बने,
अपनाकर दलित-अछूतों को मानव से देव महान बने,
जीवन के रोते पतझर में, तुम खिला गए मधुमास नया,
अपने साहसमय कृत्यों से लिख गए एक इतिहास नया,
इस धरती का कण-कण गरिमा के गीत तुम्हारें गाएगा।
ये देश तुम्हारे उपकारों से उऋण नहीं हो पाएगा।।