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भोर में सुबह-सवेरे कल फिर वह भागेगा
झाड़ी के नीचे फेंक कर फेंककर अपनी रुपहली टोपीलहराते हुए चंचल वह घोड़ी उसकी महावेगाभागेगी लाल पूँछ उठाए, मैदान में होगी अलोपी माँ ! मुझे कल सुबह थोड़ा जल्दी जगानाऔर रोशनी से भर देना हमारा ग़रीबख़ानालोग कहते हैं जल्दी ही मशहूर हो जाऊँगारूस का प्रसिद्ध कवि बन, है मुझे जगमगाना मेहमान के लिए और तेरे लिए मैं गाऊँगा गीत अपने घर के, मुर्गियों के और अलाव केमेरे गीतों को धोएगी अपने दूध से लाल गायमुझे गीत गाने हैं अपने रूस के औ’ गाँव के
1917
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