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मुझे कल सुबह थोड़ा जल्दी जगाना / सिर्गेय येसेनिन / अनिल जनविजय

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मुझे कल सुबह थोड़ा जल्दी जगाना
ओ मेरी, सब कुछ सहन करने वाली, माँ !
मुझे सड़क के उस पार बने टीले तक है जाना
जहाँ से अपने प्रिय मेहमान को है लाना

उस घने जंगल में देखे थे आज मैंने
घास के मैदान में चौड़े पहियों के निशान
हवा घूम रही थी बादलों के वस्त्र पहने
वन में चमक रही थी उसकी सुनहरी कमान

भोर में सुबह-सवेरे कल फिर वह भागेगा
झाड़ी के नीचे फेंककर अपनी रुपहली टोपी
लहराते हुए चंचल वह घोड़ी उसकी महावेगा
भागेगी लाल पूँछ उठाए, मैदान में होगी अलोपी

माँ ! मुझे कल सुबह थोड़ा जल्दी जगाना
और रोशनी से भर देना हमारा ग़रीबख़ाना
लोग कहते हैं जल्दी ही मशहूर हो जाऊँगा
रूस का प्रसिद्ध कवि बन, है मुझे जगमगाना

मेहमान के लिए और तेरे लिए मैं गाऊँगा
गीत अपने घर के, मुर्गियों के और अलाव के
मेरे गीतों को धोएगी अपने दूध से लाल गाय
मुझे गीत गाने हैं अपने रूस के औ’ गाँव के

1917

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                   Сергей Есенин
          Разбуди меня завтра рано

Разбуди меня завтра рано,
О моя терпеливая мать!
Я пойду за дорожным курганом
Дорогого гостя встречать.

Я сегодня увидел в пуще
След широких колес на лугу.
Треплет ветер под облачной кущей
Золотую его дугу.

На рассвете он завтра промчится,
Шапку-месяц пригнув под кустом,
И игриво взмахнет кобылица
Над равниною красным хвостом.

Разбуды меня завтра рано,
Засвети в нашей горнице свет.
Говорят, что я скоро стану
Знаменитый русский поэт.

Воспою я тебя и гостя,
Нашу печь, петуха и кров...
И на песни мои прольется
Молоко твоих рыжих коров.

1917