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सुरभित स्पंदन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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03:15, 4 जनवरी 2021
'''सुरभित स्पंदन'''
उर भी कुसुमित।
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बँधी है डोर
प्रेम पगे दो छोर
तुम्हारे हाथ
आएँ भले तूफ़ान
रहना सदा साथ।
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वीरबाला
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