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उठती हूक/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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14:00, 16 मार्च 2021
प्रतीक्षारत झील
प्रिय को ढूँढे ।
31
सिमटी झील
खो गए दो किनारे
बची कीचड़।
</poem>
वीरबाला
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