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"रेंगती हवाएँ / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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16:28, 28 मार्च 2021 के समय का अवतरण

              रक्तदान में जिनके
              लहू काम आए
              झेल रहे धमनी में
              रेंगती हवाएँ

मौत सरक आई है
क्रमशः सिरहाने
धोखे भी बचे सिर्फ़
आने-दो आने
              शोक-वस्त्र पहन रहीं
              नर्तकी प्रथाएँ

’फ़्लैश गन’ चमकती हैं
तो चेहरे चमके
झूल रहीं दो बाँहें
झूल रहे तमगे
              जिन पर उत्कीर्ण हैं
              दधीची की कथाएँ

शतरंजी चालों के
तेवर हैं सादे
फ़रजी की चाल चलें
कल तक के प्यादे
              बचे-खुचे गोट नियम
              खेल के निभाएँ