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रेंगती हवाएँ / अमरनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
रक्तदान में जिनके
लहू काम आए
झेल रहे धमनी में
रेंगती हवाएँ
मौत सरक आई है
क्रमशः सिरहाने
धोखे भी बचे सिर्फ़
आने-दो आने
शोक-वस्त्र पहन रहीं
नर्तकी प्रथाएँ
’फ़्लैश गन’ चमकती हैं
तो चेहरे चमके
झूल रहीं दो बाँहें
झूल रहे तमगे
जिन पर उत्कीर्ण हैं
दधीची की कथाएँ
शतरंजी चालों के
तेवर हैं सादे
फ़रजी की चाल चलें
कल तक के प्यादे
बचे-खुचे गोट नियम
खेल के निभाएँ