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या सत्य के भय-भार से | या सत्य के भय-भार से | ||
− | भाग कर जाता कहाँ संसार से ! | + | भाग कर जाता कहाँ संसार से ! |
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+ | रोज़ तुझको सूँघकर | ||
+ | कुत्ते निकल जाते | ||
+ | क्यों गली में व्यर्थ | ||
+ | बदबू दे रहा पगले । | ||
+ | मूक भाषा आँख की | ||
+ | महती धरोहर है | ||
+ | किस जनम के तू | ||
+ | स्वयं से ले रहा बदले । | ||
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भोग सीधे वक़्त के तेवर | भोग सीधे वक़्त के तेवर | ||
− | मत चुनौती के मुकर स्वीकार से ! | + | मत चुनौती के मुकर स्वीकार से ! |
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+ | नोंचकर इस ज़िस्म को | ||
+ | क्यों हो रहा नंगा | ||
+ | खीझ, लेकिन, सीख | ||
+ | अपने आप में रहना । | ||
+ | ज़िन्दगी से जोड़कर | ||
+ | खोटी तमन्नाएँ | ||
+ | भावना में और अब | ||
+ | ज़्यादा नहीं बहना । | ||
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ओखली में दे दिया जब सिर | ओखली में दे दिया जब सिर | ||
− | क्या बमकना धनकुटे की मार से ! | + | क्या बमकना धनकुटे की मार से ! |
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+ | हैं सृजन के पहरुए | ||
+ | इस वक़्त चुप साधे | ||
+ | है उन्हें चिन्ता नहीं | ||
+ | तेरे गिरे घर की । | ||
+ | अस्मिता के ध्वंस पर | ||
+ | फिर से खड़े होकर | ||
+ | ठीक-से पहचान | ||
+ | ध्वनि | ||
+ | अपने कटे स्वर की । | ||
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ढो रहा तू जो बड़ा पत्थर | ढो रहा तू जो बड़ा पत्थर | ||
− | मानते, बेडौल है आकार से ! | + | मानते, बेडौल है आकार से ! |
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04:04, 6 मार्च 2024 के समय का अवतरण
स्वप्न के
या सत्य के भय-भार से
भाग कर जाता कहाँ संसार से !
रोज़ तुझको सूँघकर
कुत्ते निकल जाते
क्यों गली में व्यर्थ
बदबू दे रहा पगले ।
मूक भाषा आँख की
महती धरोहर है
किस जनम के तू
स्वयं से ले रहा बदले ।
भोग सीधे वक़्त के तेवर
मत चुनौती के मुकर स्वीकार से !
नोंचकर इस ज़िस्म को
क्यों हो रहा नंगा
खीझ, लेकिन, सीख
अपने आप में रहना ।
ज़िन्दगी से जोड़कर
खोटी तमन्नाएँ
भावना में और अब
ज़्यादा नहीं बहना ।
ओखली में दे दिया जब सिर
क्या बमकना धनकुटे की मार से !
हैं सृजन के पहरुए
इस वक़्त चुप साधे
है उन्हें चिन्ता नहीं
तेरे गिरे घर की ।
अस्मिता के ध्वंस पर
फिर से खड़े होकर
ठीक-से पहचान
ध्वनि
अपने कटे स्वर की ।
ढो रहा तू जो बड़ा पत्थर
मानते, बेडौल है आकार से !