Changes

प्रण / त्रिलोचन

3 bytes added, 12 फ़रवरी
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
त्रेता में खर दूषण खरदूषण भी दावत क्रते करते थे,
मुनियों की हड्डी का एक पहाड़ बन गया,
विकट चक्र था,फँस करवीतराग फँसकर वीतराग मरते थे,शांत शान्त तपोवन बेचारों का भाड़ बन गया 
अनायास सामूहिक वध खिलवाड़ बन गया,
प्रभुता के मदमत्तों का । यह बात राम से
छिप न सकी, हिंसन हिंसा कब तिल का ताड़ बन गया;
"राक्षस जब तक नहीं जाएँगे । धरा धाम से
 
तब तक चैन न लूँगा"; अपने दिव्य नम से
दक्षिण भुजा उठा कर उठाकर यह प्रण किया और फिर
लगे कार्यसाधन में, केवल इसी काम से
तन मन जोड़ा, रहे इसी के हित स्थिर अस्थिर ।
महाकुंभ महाकुम्भ में हत निरीह प्राणों की पीड़ाकौन समझ कर समझकर बढ़ता है लेने को बीड़ा ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,379
edits