भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेघ आए / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br>
 
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br>
  
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की<br>
+
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की<br>
 
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’<br>
 
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’<br>
 
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की<br>
 
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की<br>
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी<br>
 
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी<br>
 
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’<br>
 
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’<br>
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढ़रके<br>
+
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके<br>
 
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।<br>
 
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।<br>

15:34, 19 मई 2007 का अवतरण

कवि: सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।

आगे-आगे नाचती - गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली

पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।