भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अनामिका / सू…)
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
मुक्त अम्बर गया, अब हो
 
मुक्त अम्बर गया, अब हो
 
:::जलधि-जीवन को!"
 
:::जलधि-जीवन को!"
द्सकल साभिप्राय;
+
:सकल साभिप्राय;
 
समझ पाया था नहीं मैं,
 
समझ पाया था नहीं मैं,
 
:::थी तभी यह हाय!
 
:::थी तभी यह हाय!

01:50, 11 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(गीत)
कहा जो न, कहो!
नित्य - नूतन, प्राण, अपने
गान रच-रच दो!
विश्व सीमाहीन;
बाँधती जातीं मुझे कर कर
व्यथा से दीन!
कह रही हो--"दुःख की विधि--
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
विहग के वे पंख बदले,--
किया जल का मीन;
मुक्त अम्बर गया, अब हो
जलधि-जीवन को!"
सकल साभिप्राय;
समझ पाया था नहीं मैं,
थी तभी यह हाय!
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
आज प्याले गरल के घन;
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
पियो, प्रिय, निरुपाय!
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
आई हुई, न डरो!"