"प्रस्थान से पहले / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | प्रस्थान से पहले का | + | हमेशा |
− | वह डरावना क्षण | + | प्रस्थान से पहले का |
− | जिस में सब कुछ थम जाता है | + | वह डरावना क्षण |
− | और रुकने में | + | जिस में सब कुछ थम जाता है |
− | रीता हो जाता है: | + | और रुकने में |
− | गाड़ियाँ, बातें, इशारे | + | रीता हो जाता है: |
− | आँखों की टकराहटें, | + | गाड़ियाँ, बातें, इशारे |
− | साँस: | + | आँखों की टकराहटें, |
− | समय की फाँस अटक जाती है | + | साँस: |
− | (जीवन की गले में) | + | समय की फाँस अटक जाती है |
− | हमेशा, हमेशा, हमेशा...। | + | (जीवन की गले में) |
+ | हमेशा, हमेशा, हमेशा...। | ||
− | और हमेशा विदाई के पहले का | + | और हमेशा विदाई के पहले का |
− | वह और भी डरावना क्षण | + | वह और भी डरावना क्षण |
− | जिस में सारे अपनापे | + | जिस में सारे अपनापे |
− | सुन्न हो जाते हैं | + | सुन्न हो जाते हैं |
− | एक परायेपन की | + | एक परायेपन की |
− | चट्टान के नीचे: | + | चट्टान के नीचे: |
− | प्यार की मींड़दार पुकारें | + | प्यार की मींड़दार पुकारें |
− | सम उक्तियों में गूंज जानेवाली | + | सम उक्तियों में गूंज जानेवाली |
− | गुंथी उंगलियों, विषम, घनी साँसों की यादें, | + | गुंथी उंगलियों, विषम, घनी साँसों की यादें, |
− | कनखियाँ, सहलाहटें, | + | कनखियाँ, सहलाहटें, |
− | कनबतियाँ, | + | कनबतियाँ, |
− | अस्पर्श चुम्बन, | + | अस्पर्श चुम्बन, |
− | अनकही आपस में जानी प्रतीक्षाएँ, | + | अनकही आपस में जानी प्रतीक्षाएँ, |
− | खुली आँखों की वापियों में और गहरे | + | खुली आँखों की वापियों में और गहरे |
− | :सहसा खुल जाने वाले | + | :सहसा खुल जाने वाले |
− | पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार— | + | पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार— |
− | खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें, | + | खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें, |
− | कँपकपियाँ, हल्के दुलार... | + | कँपकपियाँ, हल्के दुलार... |
− | काल की गाँस कर देती है | + | काल की गाँस कर देती है |
− | अपने को अपना ही अजनबी— | + | अपने को अपना ही अजनबी— |
− | हमेशा, हमेशा, हमेशा... < | + | हमेशा, हमेशा, हमेशा... |
+ | </poem> |
21:48, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हमेशा
प्रस्थान से पहले का
वह डरावना क्षण
जिस में सब कुछ थम जाता है
और रुकने में
रीता हो जाता है:
गाड़ियाँ, बातें, इशारे
आँखों की टकराहटें,
साँस:
समय की फाँस अटक जाती है
(जीवन की गले में)
हमेशा, हमेशा, हमेशा...।
और हमेशा विदाई के पहले का
वह और भी डरावना क्षण
जिस में सारे अपनापे
सुन्न हो जाते हैं
एक परायेपन की
चट्टान के नीचे:
प्यार की मींड़दार पुकारें
सम उक्तियों में गूंज जानेवाली
गुंथी उंगलियों, विषम, घनी साँसों की यादें,
कनखियाँ, सहलाहटें,
कनबतियाँ,
अस्पर्श चुम्बन,
अनकही आपस में जानी प्रतीक्षाएँ,
खुली आँखों की वापियों में और गहरे
सहसा खुल जाने वाले
पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार—
खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें,
कँपकपियाँ, हल्के दुलार...
काल की गाँस कर देती है
अपने को अपना ही अजनबी—
हमेशा, हमेशा, हमेशा...