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प्रस्थान से पहले / अज्ञेय

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हमेशा
प्रस्थान से पहले का
वह डरावना क्षण
जिस में सब कुछ थम जाता है
और रुकने में
रीता हो जाता है:
गाड़ियाँ, बातें, इशारे
आँखों की टकराहटें,
साँस:
समय की फाँस अटक जाती है
(जीवन की गले में)
हमेशा, हमेशा, हमेशा...।

और हमेशा विदाई के पहले का
वह और भी डरावना क्षण
जिस में सारे अपनापे
सुन्न हो जाते हैं
एक परायेपन की
चट्टान के नीचे:
प्यार की मींड़दार पुकारें
सम उक्तियों में गूंज जानेवाली
गुंथी उंगलियों, विषम, घनी साँसों की यादें,
कनखियाँ, सहलाहटें,
कनबतियाँ,
अस्पर्श चुम्बन,
अनकही आपस में जानी प्रतीक्षाएँ,
खुली आँखों की वापियों में और गहरे
सहसा खुल जाने वाले
पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार—
खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें,
कँपकपियाँ, हल्के दुलार...
काल की गाँस कर देती है
अपने को अपना ही अजनबी—
हमेशा, हमेशा, हमेशा...