भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ / अनिल कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (हिज्जे) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=पहला उपदेश / अनिल कुमार सिंह | |संग्रह=पहला उपदेश / अनिल कुमार सिंह | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | माँ | ||
+ | एक भरी हुई थाली का नाम है | ||
+ | मैं सोचता था | ||
+ | जब मैं बहुत छोटा था | ||
− | + | आज मैं बड़ा हो गया हूँ | |
− | + | और सोचता हूँ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | आज मैं बड़ा हो गया हूँ | + | |
− | और सोचता हूँ | + | |
कि मैं ग़लत सोचता था। | कि मैं ग़लत सोचता था। | ||
+ | </poem> |
21:25, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
माँ
एक भरी हुई थाली का नाम है
मैं सोचता था
जब मैं बहुत छोटा था
आज मैं बड़ा हो गया हूँ
और सोचता हूँ
कि मैं ग़लत सोचता था।