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"घटा / इसाक अश्क" के अवतरणों में अंतर
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08:53, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण
दो शब्द चित्र
(एक)
बारिशों के पल
नया
जादू जगाते हैं।
तितलियाँ
लेकर उड़ीं-
संयम हवाओं में,
खिंच गए
सौ-सौ धनुष-
दृष्टि, दिशाओं में,
जुगनुओं से
याद के
खण्डहर सजाते हैं।
गंध बनकर
डोलती-
काया गुलाबों की,
पंक्तियाँ
जीवित हुई-
जैसे किताबों की,
गाछ-भी
यह देखकर
ताली बजाते हैं।
(दो)
रंग
खुशबू-घटा
क्या नहीं आजकल।
रैलियाँ
जुगनुओं की-
निकलने लगीं,
हर दिशा
वस्त्र अपने-
बदलने लगीं,
सूर
उलझी जटा
क्या नहीं आजकल।
द्वार तक हिम-हवा-
थरथराते हुए,
आ-गयी
गीत-गोविन्द-
गाते हुए,
छंद
धनुयी छटा
क्या नहीं आजकल।